दर्शन करे पारसनाथ के पवित्र पहाडों का

जैन धर्म के लोगों की आस्था का प्रतीक है पारसनाथ की पर्वत श्रृंख्ला

झारखण्ड के गिरीडीह जिले में स्थित पारसनाथ की पर्वत श्रृंख्ला जैन धर्मालम्बियों के सबसे पवित्र धार्मिक स्थलों में से एक है। पारसनाथ के दर्शन यानी उसके ऊंचे-ऊंचे पर्वत श्रृंख्ला को देखने का आनंद पारसनाथ रेलवे स्टेशन से होकर गुजरने वाली लगभग सभी रेलगाड़ियों से लिया जा सकता है। लम्बी दूरी की लगभग सभी रेलगाड़ि़याँ जैसे कि कोलकाता राजधानी एक्सप्रेस, पुरी-नई दिल्ली पुरूषोतम एक्सप्रेस, मुम्बई-हावड़ा मेल, अहमदाबाद-आसनसोल पारसनाथ एक्सप्रेस इत्यादि यहां पर्याप्त समय के लिए रूकती है। हावड़ा से दिल्ली को जोडने वाले मार्ग को इसका मूल मार्ग कहा जा सकता है। यहाँ के सबसे ऊँचे पर्वत की ऊँचाई 1350 मीटर है जो सिर्फ झारखण्ड राज्य का ही नहीं बल्कि हिमालय के दक्षिण में पड़ने वाला सबसे ऊँचा पर्वत है। यह पहाड़ी मधुवन नाम के जंगलो से घिरी हुई है।

आस्था का प्रतीकः

यह स्थल जैन धर्मालम्बियों के सबसे पवित्र धार्मिक स्थलों में से एक है। जैन धर्म के लोग इस स्थान को ‘श्री सम्मेता जी‘ कहते है। इस स्थल का नाम 23वें तीर्थकर पारसनाथ के नाम पर रखा गया है। यहाँ के सबसे पुराने मंदिर पर 1775 इस्वी दर्ज होने के कारण इसे जैनियों का सबसे पुराना मंदिर भी कहा जाता है। जैनियों के लिए पारसनाथ वह जगह है जहाँ उनके 24 में से 20 तीर्थकरों ने मोक्ष प्राप्त किया था। जानकारों के अनुसार यहाँ स्थित कुछ मंदिर 2000 साल से भी अधिक पुराने है। पारसनाथ की पहाड़ियों पर मूलतः संथाल आदिवासी निवास करते है। आदिवासी समुदाय के लोग इस पहाड़ी को मरंग बुरू देवता के नाम से पूजते है। मध्य अप्रैल में बैसाखी के दौरान पूर्णिमा की रात को प्रति वर्ष स्थानीय संथाल आदिवासी यहां शिकार उत्सव भी मनाते है। इसके अलावा यहाँ जैन धर्म से जुड़े कई मंदिर मौजुद है जो आधुनिक रूप से बनाए गए है। समोशरण मंदिर व भोमिया जी स्थान यहाँ काफी प्रसिद्ध है। वही मधुवन हाउस में स्थित जैन म्यूज़ियम में आप जैन धर्म से जुड़ी कई मूर्तियाँ, पांडुलिपी आदि भी देख सकते है। म्यूज़ियम में स्थित टेलीस्कोप की सहायता से भी पारसनाथ मंदिर को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। मधुवन से मात्र 3.5 किलोमीटर की दूरी पर बहने वाली गन्धर्व नदी व सीता नदी भी इस स्थान की खूबसूरती में चार चांद लगाते है। जैन तीर्थयात्री गन्धर्व नदी से लेकर ‘श्री सम्मेता जी‘ तक के मार्ग को बेहद पवित्र स्थान मानते हैं।

पर्यटन स्थल के रूप में भी प्रसिद्ध

धर्म के अलावा पर्यटन के लिहाज़ से भी यह स्थान काफी महत्वपूर्ण है। ट्रैकिंग में रूचि रखने वाले पर्यटकों को मधुवन से शुरूआत करनी होती है। यधपि पर्वत के ऊपर की दिशा से आसानी से पर्वतारोहण किया जा सकता है। पर्वतरोहण के लिए पर्यटकों को कुल 27 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है। पर्वत पर नहीं चढ़ पाने वाले पर्यटकों को डोली वालों से सःशुल्क सेवा लेनी पड़ती है। चढ़ाई के समय पर्यटकों के पास टॉर्च का होना जरूरी है। पर्यटक रास्ते में पड़ने वाली दुकानों से चाय, कॉफ़ी, एनर्जी ड्रिंक इत्यादि खरीद सकते है। पारसनाथ की मुख्य पहाड़ी से पहले पर्यटकों की रूचि दो अन्य पर्वत गौतम स्वामी एवं चंद्र प्रभु पहाड़ी को देखने की होती है। राज्य सरकार द्वारा पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं शुरू करने पर विचार हो रहा है जिसमें पैराग्लाइडिंग और पैरासेलिंग के खेल की शुरूआत महत्वपूर्ण है। स्थानीय लोग अक्सर यहाँ पिकनिक मनाने के लिए भी आते है। अक्टूबर से मार्च के बीच का समय पर्यटन के लिहाज़ से सबसे उपयुक्त है। हालाँकि यहाँ मांस-मदिरा का प्रयोग पूर्णतः वर्जित है।

कहाँ ठहरे:

पर्यटकों के रहने के लिए पास के इसरी नामक स्थान में कई जैन धर्मशालायें एवं एक डाक बंगला स्थित है।


दर्शन करे पारसनाथ के पवित्र पहाडों का दर्शन करे पारसनाथ के पवित्र पहाडों का Reviewed by GlamourTreat on May 22, 2016 Rating: 5

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